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Wednesday, 19 March 2014

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निश्चयाचा महामेरू। बहुत जनासी आधारू।
अखंडस्थितीचा निर्धारू। श्रीमंत योगी।।

परोपकाराचीया राशी। उदंड घडती जयाशी।
तयाचे गुण महत्त्वासी। तुळणा कैची ? ।।

यशवंत कीतिर्वंत। सार्मथ्यवंत वरदवंद।
पुण्यवंत नीतिवंत। जाणता राजा।।

आचारशीळ विचारशीळ। दानशीळ धर्मशीळ।
सर्वज्ञपणें सुशीळ। सकळा ठाई।।

या भूमंडळाचे ठायी। धर्म रक्षी ऐसा नाही।
महाराष्ट्र धर्म राहिला काही। तुम्हांकरिता।।

कित्येक दुष्ट संहारिले। कित्येकास धाक सुटले।
कित्येकास आश्रय जाले। शिवकल्याणराजा।।

- समर्थ रामदास 


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